मध्यप्रदेश में पारंपरिक उत्पादों की पहचान और संरक्षण के लिए जीआई टैगिंग पर राज्य स्तरीय बैठक सम्पन्न
मध्यप्रदेश में पारंपरिक उत्पादों की पहचान और संरक्षण के लिए जीआई टैगिंग पर राज्य स्तरीय बैठक आयोजित, एमओयू हस्ताक्षरित, 20 उत्पादों की फाइलिंग का लक्ष्य।

मध्यप्रदेश लघु उद्योग निगम द्वारा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विभाग के अंतर्गत विश्व बैंक समर्थित आरएएमपी योजना के अंतर्गत मंगलवार को राज्य स्तरीय परामर्श बैठक का आयोजन किया गया। यह बैठक निगम के कॉन्फ्रेंस हॉल में सम्पन्न हुई, जिसमें जीआई टैगिंग (भौगोलिक संकेतक) के महत्व, प्रक्रिया और राज्य के पारंपरिक उत्पादों को कानूनी संरक्षण देने पर विचार हुआ।
बैठक में मध्यप्रदेश लघु उद्योग निगम और ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन, वाराणसी के बीच जीआई टैगिंग प्रक्रिया से संबंधित एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। इसका उद्देश्य राज्य के पारंपरिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक विशेषता वाले उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना है।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता और जीआई टैगिंग विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत ने बताया कि बनारसी साड़ी, चंदेरी वस्त्र, और मधुबनी पेंटिंग जैसे उत्पादों को जीआई टैग मिलने से कारीगरों और किसानों की आजीविका को मजबूती मिली है। उन्होंने कहा कि जीआई टैग न केवल कानूनी संरक्षण देता है, बल्कि बाज़ार और ब्रांडिंग के अवसर भी बढ़ाता है।
एमएसएमई आयुक्त श्री दिलीप कुमार ने विभिन्न विभागों से योजना में सक्रिय भागीदारी की अपील की और बताया कि जीआई टैगिंग से भारत को वैश्विक स्तर पर सांस्कृतिक पहचान और आर्थिक लाभ मिलेगा।
बैठक में वन विभाग, किसान कल्याण, हस्तशिल्प, वनोपज, मत्स्य, वस्त्र, रेशम, पशुपालन, कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर सहित विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया और अपने क्षेत्रों के विशिष्ट उत्पादों की सूची प्रस्तुत की।
रैंप योजना के नोडल अधिकारी श्री अनिल थागले ने सभी विभागों से आग्रह किया कि वे ऐसे उत्पाद चिन्हित करें जिन्हें जीआई टैगिंग के लिए आगे बढ़ाया जा सके। आगामी वर्ष में कम से कम 20 उत्पादों की जीआई फाइलिंग का लक्ष्य रखा गया है।