नई रिपोर्ट का खुलासा: देश के सबसे अमीर लोग क्यों नहीं भरते पूरी ईमानदारी से टैक्स?

टैक्स देना हर नागरिक का कर्तव्य है और यह देश के विकास की रीढ़ होता है। सरकार इसी टैक्स से स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा और अन्य ज़रूरी सेवाओं पर खर्च करती है।

नई रिपोर्ट का खुलासा: देश के सबसे अमीर लोग क्यों नहीं भरते पूरी ईमानदारी से टैक्स?

टैक्स देना हर नागरिक का कर्तव्य है और यह देश के विकास की रीढ़ होता है। सरकार इसी टैक्स से स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा और अन्य ज़रूरी सेवाओं पर खर्च करती है। लेकिन हाल ही में एक स्टडी से यह चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है कि देश के सबसे अमीर लोग—जिन्हें हम 'सुपर रिच' कहते हैं—पूरी ईमानदारी से टैक्स नहीं भर रहे हैं।

आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी के सदस्य और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के डायरेक्टर प्रोफेसर राम सिंह ने इस विषय पर एक गहन अध्ययन किया है। उन्होंने बताया कि देश के कई धनकुबेर अपनी आय कम दिखाते हैं ताकि उन्हें कम टैक्स देना पड़े। इस रणनीति के चलते वे अपनी संपत्ति का केवल एक छोटा हिस्सा ही टैक्स के रूप में चुकाते हैं। कुछ मामलों में तो यह हिस्सा 0.7 प्रतिशत से भी कम पाया गया है।

राम सिंह ने यह विश्लेषण लोकसभा चुनाव के दौरान उम्मीदवारों द्वारा दिए गए हलफनामों, फोर्ब्स की अमीरों की सूची और आयकर विभाग के आंकड़ों के आधार पर किया है। उन्होंने पाया कि इन अमीर व्यक्तियों की जो वास्तविक पूंजीगत आय होती है, वह उनके टैक्स रिकॉर्ड में अक्सर दर्ज नहीं होती। यानी उनके इनकम टैक्स रिटर्न में दी गई जानकारी अधूरी होती है, जिससे उनका टैक्स कंट्रीब्यूशन असल में जितना होना चाहिए, उससे कहीं कम रहता है।

स्टडी का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि जैसे-जैसे किसी व्यक्ति की संपत्ति बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे उसकी कुल संपत्ति के अनुपात में टैक्स की हिस्सेदारी घटती जाती है। इसका मतलब यह है कि भारत के सबसे अमीर 0.1 प्रतिशत लोगों की कर देयता उनकी कुल संपत्ति का औसतन केवल 0.7 प्रतिशत होती है, जो बेहद कम है।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि इन अमीर लोगों के द्वारा घोषित इनकम-टू-वेल्थ रेश्यो यानी आय और संपत्ति का अनुपात बहुत ही कम है, जो यह दर्शाता है कि टैक्स से बचने की रणनीति के तहत वे अपनी वास्तविक कमाई को छुपाते हैं। जब किसी परिवार की संपत्ति में एक प्रतिशत की वृद्धि होती है, तो घोषित इनकम-वेल्थ रेश्यो में लगभग 0.6 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिलती है।

इस तरह की प्रवृत्तियाँ टैक्स प्रणाली की पारदर्शिता और न्यायसंगतता पर सवाल खड़े करती हैं। यदि देश के सबसे अमीर लोग ही टैक्स से बचाव के रास्ते ढूंढते रहेंगे, तो यह न सिर्फ सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि समाज में टैक्स कंप्लायंस के प्रति विश्वास भी कमजोर करेगा।

सरकार और नीति-निर्माताओं को इस रिपोर्ट से सबक लेते हुए ऐसे मैकेनिज्म पर काम करना चाहिए जिससे टैक्स की जिम्मेदारी से कोई भी वर्ग—चाहे वो आम नागरिक हो या उद्योगपति—बच न सके।