फसल बीमा घोटाले का आरोप, संयुक्त किसान मोर्चा ने दिया धरना
संयुक्त किसान मोर्चा ने किसानों को 350 करोड़ रुपये की बीमा क्लेम राशि से वंचित करने का आरोप लगाते हुए वीरवार को चरखी दादरी लघु सचिवालय परिसर में धरना शुरू किया।

संयुक्त किसान मोर्चा ने किसानों को 350 करोड़ रुपये की बीमा क्लेम राशि से वंचित करने का आरोप लगाते हुए वीरवार को चरखी दादरी लघु सचिवालय परिसर में धरना शुरू किया। प्रदर्शनकारियों ने उपायुक्त कार्यालय में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नाम ज्ञापन सौंपा। इसमें कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक और महानिदेशक पर बीमा कंपनी से मिलीभगत कर 450 करोड़ रुपये की बीमा क्लेम राशि को घटाकर 100 करोड़ रुपये करने का गंभीर आरोप लगाया गया है।
बीमा राशि में हेराफेरी का आरोप
संयुक्त किसान मोर्चा के अनुसार, अखिल भारतीय किसान सभा हरियाणा और संयुक्त किसान मोर्चा भिवानी लंबे समय से खरीफ 2023 की कपास फसल के बीमा क्लेम को जारी करने की मांग कर रहे हैं। अब संगठन के संज्ञान में आया है कि चरखी दादरी और भिवानी जिले के किसानों की कुल बीमा राशि 450 करोड़ रुपये बनती थी, लेकिन कृषि विभाग के अधिकारियों ने बीमा कंपनी से साठगांठ कर दादरी जिले के किसानों का 150 करोड़ रुपये का मुआवजा पूरी तरह शून्य कर दिया। वहीं, भिवानी जिले के किसानों को 300 करोड़ रुपये के बजाय केवल 100 करोड़ रुपये की राशि प्रदान की गई। इस घोटाले के लिए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के महानिदेशक राजनारायण कौशिक और निदेशक राजीव मिश्रा को जिम्मेदार ठहराया गया है।
अधिकारियों को हटाने और सीबीआई जांच की मांग
संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि दोनों अधिकारियों को तत्काल पद से हटाया जाए और इस पूरे बीमा घोटाले की सीबीआई से जांच कराई जाए।
बीमा राशि में भारी कमी
ज्ञापन में बताया गया कि 4 फरवरी 2024 को लोकसभा सत्र में पूछे गए एक सवाल के जवाब में यह खुलासा हुआ कि वर्ष 2022-23 में बीमा कंपनियों ने किसानों को कुल 2496.89 करोड़ रुपये की फसल बीमा राशि प्रदान की थी, जबकि 2023-24 में यह राशि घटकर मात्र 224.34 करोड़ रुपये रह गई।
किसान प्रतिनिधियों को समितियों में शामिल करने की मांग
संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार से यह भी मांग की कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के प्रावधानों के अनुसार सभी शिकायत निवारण समितियों में किसान प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए। फिलहाल, इन समितियों में किसानों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, जिससे उनके हितों की अनदेखी की जा रही है।