दिल्ली में आवारा कुत्तों की बढ़ती समस्या पर सुप्रीम कोर्ट में हुई तीखी बहस
सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली और देशभर में आवारा कुत्तों के बढ़ते हमलों पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल, कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने रखे अपने-अपने तर्क। कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा।

दिल्ली में आवारा कुत्तों के बढ़ते मामलों पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों वाली विशेष पीठ — जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया — ने सुनवाई की। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने अपने-अपने पक्ष रखे।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि देश में आवारा कुत्तों के हमले गंभीर समस्या बन चुके हैं। उनके अनुसार, हर साल लगभग 37 लाख और प्रतिदिन करीब 10 हजार लोग कुत्तों के काटने का शिकार होते हैं, जबकि 305 लोगों की मौत रेबीज संक्रमण के कारण हो चुकी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जानवरों के प्रति नफरत की बात नहीं है, न ही उन्हें मारने का समर्थन किया जा रहा है, लेकिन उन्हें मानव बस्तियों से अलग रखना जरूरी है ताकि बच्चे और बुजुर्ग सुरक्षित रह सकें। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ लोग घर में मांसाहार खाते हुए खुद को पशु प्रेमी बताते हैं और सड़कों पर आवारा कुत्तों को खिलाते हैं, जिससे समस्या और बढ़ जाती है।
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि आवारा कुत्तों को पकड़ने के बाद उनके पुनर्वास, नसबंदी और टीकाकरण के लिए पर्याप्त समय और ढांचा चाहिए, जो फिलहाल उपलब्ध नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश के बाद प्रशासन ने तेजी से कुत्ते पकड़ना शुरू कर दिया, जबकि शेल्टर पहले से भरे हुए हैं। सिब्बल ने चेतावनी दी कि अधिक भीड़ से शेल्टर में कुत्तों के बीच हिंसा और झगड़े बढ़ेंगे, और बाद में छोड़े जाने पर वे और आक्रामक हो सकते हैं।
जस्टिस विक्रम नाथ ने सिब्बल से सवाल किया कि क्या प्रशासन आदेश का इंतजार कर रहा था और आदेश आते ही पकड़ शुरू कर दी? इस पर सिब्बल ने जवाब दिया कि हां, प्रशासन भरे हुए शेल्टर में कुत्तों को ठूंस रहा है।
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सरकार को एबीसी (एनिमल बर्थ कंट्रोल) नियमों का पालन करना चाहिए, जिसमें कुत्तों की नसबंदी, टीकाकरण और पुनर्वास शामिल है। उन्होंने सवाल उठाया कि 24 से 48 घंटे में कुत्तों को पकड़कर शेल्टर में डालने का आदेश कैसे दिया जा सकता है।
सुनवाई के दौरान पीठ ने माना कि इस समस्या की सबसे बड़ी वजह जिम्मेदार विभागों की लापरवाही है। स्थानीय प्राधिकरण वह काम नहीं कर रहे, जो उन्हें करना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए आदेश सुरक्षित रख लिया कि वह विचार करेगा कि पिछले आदेश के दिशानिर्देशों पर रोक लगाई जाए या नहीं।