नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं सुशीला कार्की, शपथ ग्रहण के साथ रचा इतिहास
नेपाल ने 12 सितंबर 2025 को इतिहास रचते हुए सुशीला कार्की को पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई। जानें राजनीतिक संकट, Gen Z आंदोलन और आगे की चुनौतियाँ।

काठमांडू। नेपाल ने 12 सितंबर 2025 को एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने राजधानी काठमांडू स्थित शीतल निवास में उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
यह नियुक्ति उस समय हुई है जब नेपाल लगातार बड़े पैमाने पर हो रहे प्रदर्शनों और राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने युवाओं द्वारा चलाए जा रहे “Gen Z आंदोलन” के दबाव में इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद संसद को भी भंग कर दिया गया।
सुशीला कार्की का सफर: न्यायपालिका से प्रधानमंत्री तक
सुशीला कार्की का जन्म 7 जून 1952 को बिराटनगर, मोरंग जिले में हुआ। उन्होंने त्रिभुवन विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया।
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वे जुलाई 2016 से जून 2017 तक नेपाल सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रहीं।
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उन्होंने न्यायपालिका में रहते हुए भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप के खिलाफ कई ऐतिहासिक फैसले दिए।
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उनका नाम Gen Z आंदोलन के नेताओं ने प्रस्तावित किया था, जिन्होंने उन्हें निष्पक्ष और विश्वसनीय चेहरा बताया।
क्यों हुआ राजनीतिक संकट?
नेपाल पिछले कुछ महीनों से गहरे राजनीतिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा था।
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युवाओं ने बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध जैसे मुद्दों पर सड़कों पर उतरकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए।
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इन प्रदर्शनों में हिंसा और आगजनी भी हुई, जिसमें कई लोगों की जान गई और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचा।
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प्रदर्शनकारियों की एक प्रमुख मांग संसद भंग करना और नई सरकार बनाना था। इसी दबाव में पीएम ओली ने इस्तीफा दिया।
चुनौतियाँ और संभावित असर
सुशीला कार्की के सामने कई अहम चुनौतियाँ हैं:
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राजनीतिक स्थिरता बहाल करना – देश में शांति और विश्वास कायम करना उनकी पहली प्राथमिकता होगी।
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Gen Z आंदोलन की मांगों को संबोधित करना – पारदर्शिता, रोजगार सृजन और लोकतांत्रिक अधिकारों को बहाल करना।
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नई चुनाव प्रक्रिया – अंतरिम सरकार का सबसे अहम काम जल्द से जल्द निष्पक्ष चुनाव कराना है।
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संवैधानिक सवाल – संविधान में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों को सरकारी पदों से दूर रखने की व्यवस्था है। उनकी नियुक्ति को “आवश्यकता के सिद्धांत” (Principle of Necessity) के तहत संभव बनाया गया है, लेकिन इस पर कानूनी बहस जारी रहेगी।
जनता की उम्मीदें
जनता और विशेषकर युवा वर्ग सुशीला कार्की से बड़ी उम्मीदें लगा रहे हैं। उन्हें भरोसा है कि न्यायपालिका से जुड़े उनके अनुभव और निष्पक्ष छवि के कारण वे राजनीतिक सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाएँगी।
नेपाल का यह ऐतिहासिक फैसला न केवल वहां की राजनीति में नया अध्याय जोड़ता है, बल्कि दक्षिण एशिया की राजनीति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी का भी प्रतीक है।