सड़कों पर अलग से साइकिल ट्रैक बनाने की मांग पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि इस मुद्दे से ज्यादा अहम दूसरे कई मसले हैं, जिन पर सुप्रीम कोर्ट ध्यान दे सकता है. स्थानीय परिस्थितियों के हिसाब से हाईकोर्ट साइकिल ट्रैक जैसे विषय पर सुनवाई करें.
सुनवाई के दौरान जस्टिस अभय एस ओका और उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा कि साइकिल ट्रैक बनाने से सड़कों की चौड़ाई कम हो जाएगी या फिर बड़ी संख्या में घरों को तोड़ कर साइकिल ट्रैक बनाने होंगे. जस्टिस ओका ने पुणे का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर वहां सड़क पर साइकिल ट्रैक बनाया गया तो ट्रैफिक व्यवस्था चरमरा जाएगी.
बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि 26 प्रतिशत पुलिस कांस्टेबल स्लम बस्तियों में रहते हैं. राज्य सरकार के पास किफायती मकान बनाने के लिए फंड नहीं है. कई जगहों पर राज्य सरकारें लोगों को पीने के लिए स्वच्छ पानी तक उपलब्ध नहीं करवा पा रही हैं. सरकारी स्कूल बंद हो जा रहे हैं और याचिकाकर्ता साइकिल ट्रैक की मांग कर रहा है. यह दिन में सपने देखने जैसी बात लगती है. सुप्रीम कोर्ट जरूरी बातों को प्राथमिकता देना चाहता है.
देविंदर सिंह नागी नाम के याचिकाकर्ता ने कहा था कि सड़क दुर्घटना में मरने वाले 50 प्रतिशत लोग पैदल यात्री या साइकिल चलाने वाले होते हैं. सड़क परिवहन मंत्रालय और स्थानीय शहरी निकायों के पास साइकिल ट्रैक निर्माण को लेकर योजनाएं है, लेकिन वह इसे प्राथमिकता नहीं देते. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह ज्यादा अहम मसलों को सुनना चाहेगा. बेहतर होगा कि इस तरह के विषय को राज्य सरकार और हाईकोर्ट के लिए छोड़ दिया जाए.