Mathura Holi 2024: 'अबला-सबला सी लगै, बरसाने की बाम...' विश्व प्रसिद्ध है नंदगांव की लठामार होली

उत्तर प्रदेश के मथुरा में खेली जाने वाली लठामार होली विश्व प्रसिद्ध है। अनुपम होली होत है लठ्ठन की सरनाम।

Mathura Holi 2024: 'अबला-सबला सी लगै, बरसाने की बाम...' विश्व प्रसिद्ध है नंदगांव की लठामार होली

उत्तर प्रदेश के मथुरा में खेली जाने वाली लठामार होली विश्व प्रसिद्ध है। अनुपम होली होत है लठ्ठन की सरनाम।

उत्तर प्रदेश के मथुरा में खेली जाने वाली लठामार होली विश्व प्रसिद्ध है। अनुपम होली होत है लठ्ठन की सरनाम। अबला-सबला सी लगै, बरसाने की बाम...। लट्ठ धरे कंधा फिरे जबहि भगावत ग्वाल, जिमि महिषासुर मर्दिनी चलती रण में चाल। लठामार होली के लिए ये पंक्तियां यूं ही नहीं लिखी गई हैं। बरसाना की विश्व प्रसिद्ध होली में न केवल प्रेम और अनुराग है, बल्कि नारी सशक्तिकरण की छाप भी है। ढाल थामे हुरियारों पर जब हुरियारिनें प्रेम पगी लाठियां बरसाती हैं, तो ये नारी सशक्तिकरण का प्रतीक बनतीं हैं।

लठामार होली को लेकर बताया जाता है कि करीब 550 वर्ष पूर्व मुस्लिम शासकों के आतंक से परेशान ब्रज बालाओं को आत्मरक्षा के लिए ब्रजाचार्य नारायण भट्ट ने लाठी उठाने को कहा था। लठामार होली के बहाने महिलाओं ने कृष्णकालीन हथियार (लाठी) उठाकर अपने सम्मान की रक्षा की तैयारियां शुरू कर दीं। 

दक्षता में दक्ष करने के उद्देशेय से शुरू हुई लठामार होली 
नारायण भट्ट की प्रेरणा से ब्रजनारियों ने हाथों में लाठियां तो उठा लीं, लेकिन प्रहार किस पर करें यह यक्ष प्रश्न था। इसका भी समाधान निकाला गया कि लठ प्रहार अपने निकटस्थ पर ही किया जाए, क्योंकि अगर अपनों पर भी प्रहार करने में दक्षता हासिल हो गई तो दुश्मन पर प्रहार करना बेहद आसान होगा। लाख बार अनुपम बरसानो पुस्तक में भी श्रील हरिगोपाल भट्ट ने बरसाना की लठामार होली का वर्णन किया है। पुस्तक में उन्होंने बरसाना की हुरियारिनों की तुलना शक्ति स्वरूपा से की है।
 
नंदबाबा मंदिर के सेवायत एवं पूर्व प्रधानाचार्य रमेश चंद गोस्वामी बताते हैं कि लठामार होली नारी सशक्तिकरण का प्रतिनिधित्व करती है। नारियों को खुद अपनी रक्षा के लिए सक्षम करने के लक्ष्य के साथ होली में लठामार का समावेश किया गया। नारी को अबला से सबला बनाए जाने का पर्व ही लठामार होली है। इसमें पुरुष असहाय नजर आता है और खुद की रक्षा करने की मुद्रा में दिखता है। नारी साक्षात दुर्गा नजर आती है।
 
लठामार होली का नवमी से संबंध
नंदबाबा मंदिर के सेवायत दान बिहारी गोस्वामी बताते हैं कि कनक पिचकारी और छड़ियों का रूप आज नंदगांव बरसाना में ढाल और लाठियों ने ले लिया है। पूर्व में चमड़े की ढालों का प्रयोग किया जाता था। आज ढालों की कई वैरायटी बाजार में आ गई हैं। ब्रजाचार्य श्रील नारायण भट्ट ने जब होली में लठामार का समावेश किया, तो होली खेलने के लिए फाल्गुन सुदी नवमी का दिन ही निर्धारित किया। नौ सबसे बड़ा अंक है। नवरात्रि में भी नवम सिद्धिदात्री होती हैं। 
 
अष्टमी को हुआ राधा और कृष्ण का जन्म
अष्टमी को राधा रानी का जन्म हुआ। अष्टमी को ही कृष्ण का जन्म भी हुआ। दोनों के जन्म के समय जब भगवान शंकर उनके दर्शनों के लिए आए तो नवमी के दिन ही आए। शिव और शक्ति का समन्वय बिना शंकर के संभव नहीं है। अतः शंकर लीला का दिवस होने से नवमी का दिन महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए नारायण भट्ट द्वारा लठामार होली के लिए नवमी का दिन निर्धारित किया गया। ताकि नारी का शक्ति स्वरूप चरम पर हो और अबला से सबला का भाव पेश हो सके।