सुल्तानपुर : भाजपा सपा मैदान में, हाथी की चतुर चाल का इंतजार, बसपा तय करती है समीकरण

उत्तर प्रदेश के दो मुख्य दलों भाजपा-सपा ने सुल्तानपुर संसदीय सीट से प्रत्याशियों को मैदान में उतार दिया है। इसके बाद भी यहां की राजनीतिक तस्वीर अधूरी है क्योंकि इस सीट पर खास खिलाड़ी बसपा ने अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं।

सुल्तानपुर : भाजपा सपा मैदान में, हाथी की चतुर चाल का इंतजार, बसपा तय करती है समीकरण

उत्तर प्रदेश के दो मुख्य दलों भाजपा-सपा ने सुल्तानपुर संसदीय सीट से प्रत्याशियों को मैदान में उतार दिया है। इसके बाद भी यहां की राजनीतिक तस्वीर अधूरी है क्योंकि इस सीट पर खास खिलाड़ी बसपा ने अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं।

उत्तर प्रदेश के दो मुख्य दलों भाजपा-सपा ने सुल्तानपुर संसदीय सीट से प्रत्याशियों को मैदान में उतार दिया है। इसके बाद भी यहां की राजनीतिक तस्वीर अधूरी है क्योंकि इस सीट पर खास खिलाड़ी बसपा ने अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं। चुनावी आंकड़े बताते हैं कि बसपा ही इस सीट पर समीकरण तय करती है। पार्टी विजेता या रनर अप नहीं रहती तो उसके प्रत्याशी किसी न किसी प्रत्याशी का खेल जरूर बिगाड़ते हैं।

1984 में बसपा का गठन हुआ। 1989 में पहली बार पार्टी ने सुल्तानपुर सीट से राम शबद को मैदान में उतारा। उन्हें जीत तो नहीं मिली, लेकिन पहले ही चुनाव में 11.23 वोट हासिल कर उन्होंने बसपा की मजबूत उपस्थिति दर्ज करा दी। 1991 के चुनाव में पार्टी ने पारस नाथ वर्मा को उतारा। इस चुनाव में पार्टी का वोट प्रतिशत तो बढ़कर 14.04 हो गया, लेकिन प्रत्याशी चौथे स्थान पर खिसक गया। 1996 में बसपा प्रत्याशी मोईद अहमद 18.61 फीसदी वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन उनकी मजबूत लड़ाई ने दूसरे स्थान पर रहे सपा के कमरुज्जमा फौजी को कमजोर किया।
1984 में बसपा का गठन हुआ। 1989 में पहली बार पार्टी ने सुल्तानपुर सीट से राम शबद को मैदान में उतारा। उन्हें जीत तो नहीं मिली, लेकिन पहले ही चुनाव में 11.23 वोट हासिल कर उन्होंने बसपा की मजबूत उपस्थिति दर्ज करा दी। 1991 के चुनाव में पार्टी ने पारस नाथ वर्मा को उतारा। इस चुनाव में पार्टी का वोट प्रतिशत तो बढ़कर 14.04 हो गया, लेकिन प्रत्याशी चौथे स्थान पर खिसक गया। 1996 में बसपा प्रत्याशी मोईद अहमद 18.61 फीसदी वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन उनकी मजबूत लड़ाई ने दूसरे स्थान पर रहे सपा के कमरुज्जमा फौजी को कमजोर किया।