तस्वीर बदली, तासीर नहीं: रोजगार और कृषि के मोर्चे पर अभी काम की दरकार; रूहेलखंड में BJP की चुनौती बनेगा विपक्ष
लखनऊ से बरेली तक का 250 किमी का सफर पहले की तरह अब हिचकोले भरा नहीं रहा है। सीतापुर में रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण पूरा होने पर जाम की समस्या से भी निजात मिल जाएगी, लेकिन यहां काम की अपेक्षित रफ्तार नहीं दिखी।

लखनऊ से बरेली तक का 250 किमी का सफर पहले की तरह अब हिचकोले भरा नहीं रहा है। सीतापुर में रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण पूरा होने पर जाम की समस्या से भी निजात मिल जाएगी, लेकिन यहां काम की अपेक्षित रफ्तार नहीं दिखी।
वाया सीतापुर, लखनऊ से दिल्ली जाने पर रूहेलखंड की हरी-भरी भूमि बरबस ही ध्यान खींच लेती है। बुनियादी विकास की तस्वीर दिखती है। स्थानीय मतदाताओं से गुफ्तगू करने पर पता चलता है कि रोजगार और कृषि के मोर्चे पर उनकी अपेक्षाएं अभी अधूरी हैं। गन्ना किसानों की अपनी दुश्वारियां हैं, तो छुट्टा पशु किसानों के लिए लगातार संकट पैदा कर रहे हैं। रूहेलखंड में जनता के बीच क्या मुद्दे हैं, आम जनमानस क्या चाहता है, बता रहे हैं अजित बिसारिया...
लखनऊ से बरेली तक का 250 किमी का सफर पहले की तरह अब हिचकोले भरा नहीं रहा है। सीतापुर में रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण पूरा होने पर जाम की समस्या से भी निजात मिल जाएगी, लेकिन यहां काम की अपेक्षित रफ्तार नहीं दिखी। सीतापुर के अरविंद शर्मा कहते हैं, लखनऊ से बरेली के बीच के चारों टोल बूथ तभी शुरू किए जाने चाहिए थे, जब सभी पुलों का निर्माण हो जाता।
अगर यह शर्त होती तो सड़क का निर्माण भी जल्द पूरा हो गया होता। अलबत्ता, शाहजहांपुर में बाईपास के चालू हो जाने से इस हाईवे पर सफर का आनंद जरूर मिलता है। शाहजहांपुर के बाद बरेली की सीमा में प्रवेश किया तो नजारा बदला हुआ मिला। सड़कें चौड़ी थीं और पहले की अपेक्षा शहर के अंदर भारी वाहन काफी कम दिखे।
कैंटोनमेंट में लाल फाटक पर रेलवे ओवरब्रिज बन जाने से आंवला और बदायूं जाना आसान हो गया है। हालांकि, रास्ता भटके तो चौपुला ओवरब्रिज से बदायूं जाना पड़ेगा, जो हर समय लगे रहने वाले जाम के कारण कम दुखदायी नहीं। पीलीभीत बाईपास रोड से कटकर जैसे ही रूहेलखंड विवि के पीछे रामगंगा नगर पहुंचे, तो बरेली शहर सुनियोजित विकास की गवाही देते हुए मिला। पिछले 3-4 वर्षों में यहां काफी काम हुए हैं।
कहां गुम हो गई टेक्सटाइल पार्क की योजना
बरेली -राघवेंद्र सिंह बरेली में कोचिंग चलाते हैं। वह कहते हैं, जितनी अपेक्षा थी, रूहेलखंड में रोजगार के क्षेत्र में उतने काम नहीं हुए। नब्बे के दशक में बंद हुई रबर फैक्टरी की जमीन पर उद्योग लगाने की वर्षों से सिर्फ खबरें ही आ रही हैं, हकीकत में हुआ कुछ नहीं। सौरभ पाराशरी कहते हैं, वर्ष 2014 में टेक्सटाइल पार्क बनाने का एलान हुआ था, पर यह योजना अभी तक आकार नहीं ले सकी।