PMFME योजना से गांव में खड़ी हुई डेयरी यूनिट, बदली कई जिंदगियां
PMFME योजना के तहत 10 लाख की सहायता से अरुण प्रसाद कुशवाहा ने गांव में डेयरी यूनिट शुरू कर आत्मनिर्भरता हासिल की और कई लोगों को रोजगार भी दिया।

एक समय के साधारण किसान अरुण प्रसाद कुशवाहा के जीवन ने पूरी तरह करवट ली, जब उन्होंने खेती से होने वाली सीमित आय के बाद स्वरोजगार की दिशा में कदम बढ़ाया। नौकरी की तलाश में असफलता हाथ लगने के बाद, उन्होंने अपने एक मित्र के सुझाव पर एसबीआई शाखा प्रबंधक से मुलाकात की।
शाखा प्रबंधक ने उन्हें प्रधानमंत्री फॉर्मलाइजेशन ऑफ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज (PMFME) योजना की जानकारी दी और ₹10 लाख का ऋण प्राप्त करने में सहायता की।
इस सहायता से अरुण ने अपने गांव में एक डेयरी प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित की, जहाँ अब दूध, दही, पनीर, लस्सी और रबड़ी जैसे उत्पाद तैयार कर बेचे जाते हैं। इस व्यवसाय से उन्हें प्रति माह ₹1 से ₹1.5 लाख तक शुद्ध लाभ प्राप्त हो रहा है।
रोजगार का बना स्रोत, गांव में 30 से ज्यादा लोगों को मिला काम
अरुण की यूनिट से गांव में 30-40 लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला है। इसमें दूध सप्लाई करने वाले, उत्पादन में लगे कर्मचारी और बिक्री से जुड़े सेल्समैन शामिल हैं।
अरुण प्रसाद कुशवाहा कहते हैं:
“PMFME योजना ने मेरी जिंदगी ही बदल दी। अब मैं आत्मनिर्भर हूं और गांव के युवाओं को भी रोजगार दे पा रहा हूं। इसके लिए मैं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त करता हूं।”
गांव लौटे लालबाबू को मिला परिवार संग कमाने का अवसर
इसी गांव के लालबाबू प्रसाद कभी रोजगार के लिए शहर जाया करते थे, लेकिन परिवार से दूर रहने की पीड़ा उन्हें हमेशा खलती थी। जब उन्होंने अरुण की यूनिट के बारे में सुना, तो वे गांव लौट आए और वहीं काम करने लगे।
लालबाबू बताते हैं:
“अब बाहर जाने की जरूरत नहीं। गांव में ही अच्छी आमदनी हो रही है और परिवार भी साथ में है।”
शहर से लौटे ज्ञानचन सहनी बोले – अब गांव में ही है हमारा भविष्य
डेयरी फार्म में काम कर रहे ज्ञानचन सहनी पहले शहरों में मजदूरी करते थे। अब वे गांव में ही रहकर सम्मानजनक काम कर रहे हैं।
ज्ञानचन कहते हैं:
“अब हमें शहर नहीं जाना पड़ता। गांव में ही अच्छा काम और कमाई हो रही है। परिवार के साथ रहने की खुशी अलग ही है।”