वित्तीय समावेशन से बदल रही है भारत की आर्थिक तस्वीर, यूपीआई और जन धन योजना का बड़ा योगदान
प्रधानमंत्री जन धन योजना से लेकर यूपीआई तक, भारत की वित्तीय समावेशन नीतियां लाखों लोगों को बैंकिंग, बीमा और डिजिटल लेनदेन से जोड़कर राष्ट्रीय आर्थिक विकास को नया आयाम दे रही हैं।

प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) से लेकर मुद्रा और यूपीआई आधारित डिजिटल भुगतान तक, भारत की वित्तीय समावेशन योजनाएं अब विकास को महानगरों से आगे बढ़ाकर पूरे देश तक पहुंचा रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि आर्थिक विकास केवल कुछ शहरों और नागरिकों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि यह सर्वांगीण और सर्वसमावेशी होना चाहिए।
वित्तीय समावेशन सूचकांक
2021 में लॉन्च किया गया वित्तीय समावेशन सूचकांक 97 संकेतकों पर आधारित है, जिनमें बैंकिंग, बीमा, पेंशन, निवेश और डाक सेवाएं शामिल हैं। इसके तीन उप-सूचकांक – पहुंच (Access), उपयोग (Usage) और गुणवत्ता (Quality) – न केवल इंफ्रास्ट्रक्चर के विस्तार को मापते हैं, बल्कि यह भी देखते हैं कि लोग वास्तव में वित्तीय उत्पादों का उपयोग कर रहे हैं और उन्हें समझते हैं या नहीं।
जन धन योजना की सफलता
प्रधानमंत्री जन धन योजना ने 55.98 करोड़ लोगों को औपचारिक बैंकिंग सिस्टम से जोड़ा है, जिनमें आधे से ज्यादा महिलाएं हैं। 13.55 लाख बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट का नेटवर्क अब देश के दूर-दराज के गांवों में सेवाएं पहुंचा रहा है। अटल पेंशन योजना में भी अब 48% ग्राहक महिलाएं हैं।
डिजिटल भुगतान में यूपीआई की क्रांति
यूपीआई अब भारत में सभी डिजिटल लेनदेन का 85% हिस्सा है और ग्लोबल रियल-टाइम डिजिटल भुगतान का लगभग आधा हिस्सा भारत से आता है। एनपीसीआई के अनुसार, 2 अगस्त 2025 को पहली बार यूपीआई-आधारित दैनिक लेनदेन 707 मिलियन तक पहुंच गए, जो पिछले दो वर्षों में दोगुना हो चुका है।
सुरक्षा और साक्षरता पर जोर
मोबाइल बैंकिंग अपनाने वाले ग्रामीण परिवार अब डिजिटल फ्रॉड के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। इसे देखते हुए वित्तीय साक्षरता अभियान अब धोखाधड़ी की रोकथाम और शिकायत निवारण पर ज्यादा ध्यान दे रहा है।
महिलाओं और किसानों के लिए योजनाएं
मुद्रा और स्टैंड अप इंडिया जैसी योजनाएं विशेष रूप से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमियों को ऋण उपलब्ध करा रही हैं। महिला समृद्धि योजना महिलाओं को क्राफ्ट स्किल में प्रशिक्षित कर उन्हें स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से लोन तक पहुंच प्रदान करती है। किसान क्रेडिट कार्ड अब 7.7 करोड़ किसानों को सेवा देकर साहूकारों पर निर्भरता घटा रहा है और कृषि उत्पादकता बढ़ा रहा है।
विश्व बैंक की रिपोर्ट
विश्व बैंक के ग्लोबल फाइंडेक्स 2025 के अनुसार, भारत में खाता स्वामित्व अब 89% तक पहुंच गया है, जो 2011 में सिर्फ 35% था। यह भारत की वित्तीय समावेशन यात्रा की ऐतिहासिक उपलब्धि है।