मंगल की बर्फीली परतों में छिपा खजाना: वैज्ञानिकों को मिली 80% शुद्ध बर्फ

मंगल ग्रह के ग्लेशियरों में 80% से अधिक शुद्ध जल बर्फ की मौजूदगी का खुलासा, जो ग्रह की जलवायु और भविष्य के मानव मिशनों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

मंगल की बर्फीली परतों में छिपा खजाना: वैज्ञानिकों को मिली 80% शुद्ध बर्फ

मंगल ग्रह की पर्वत श्रृंखलाओं और गड्ढों की ढलानों पर जो कुछ जमे हुए शहद की तरह दिखता है, असल में वह धूल और चट्टानों से ढके बेहद धीमे गति से बहते हुए ग्लेशियर हैं। पहले वैज्ञानिक मानते थे कि ये ग्लेशियर मुख्यतः चट्टानों से बने हैं जिनमें थोड़ी बहुत बर्फ मिली होती है। लेकिन पिछले 20 वर्षों के शोध से पता चला है कि इनमें से कई ग्लेशियर लगभग शुद्ध बर्फ के बने हुए हैं, जिन पर सिर्फ पतली धूल और चट्टानों की परत चढ़ी होती है।

अब एक नया अध्ययन जो Icarus नामक वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, यह दर्शाता है कि मंगल ग्रह के लगभग सभी ग्लेशियरों में 80% से अधिक शुद्ध जल बर्फ मौजूद है। यह खोज मंगल की जलवायु के इतिहास को समझने और भविष्य में मानवीय मिशनों के लिए संसाधन जुटाने के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है।

इस अध्ययन का नेतृत्व इजराइल स्थित वीज़मैन विज्ञान संस्थान के हालिया स्नातक युवाल स्टीनबर्ग ने किया। उनके साथ दो वरिष्ठ वैज्ञानिक - ओडेड अहरोनसन और आइज़क स्मिथ - सहलेखक रहे, जो प्लैनेटरी साइंस इंस्टीट्यूट, अमेरिका से जुड़े हैं।

ओडेड अहरोनसन ने कहा, “यह अध्ययन दर्शाता है कि नासा के कार्यक्रम न केवल अमेरिका में, बल्कि दुनिया भर के छात्रों को विज्ञान में योगदान देने का अवसर दे रहे हैं।”

धूल की चादर के नीचे की परतें:

जब शोधकर्ताओं ने पहले के अध्ययनों को देखा, तो उन्हें महसूस हुआ कि ग्लेशियरों की रचना का विश्लेषण करने के तरीके काफी असंगठित थे। “विभिन्न शोधकर्ताओं ने अलग-अलग तकनीकें अपनाई थीं, जिनकी तुलना संभव नहीं थी,” स्मिथ ने बताया।

इसलिए टीम ने तय किया कि वे इन मलबे से ढके ग्लेशियरों का विश्लेषण एक समान मानकों के साथ करेंगे। उन्होंने दो प्रमुख गुणों को मापा:

  1. डायइलेक्ट्रिक प्रॉपर्टी – यह बताती है कि रडार तरंगें किसी पदार्थ में कितनी तेज़ी से यात्रा करती हैं।

  2. लॉस टैन्जेंट – यह बताता है कि रडार तरंग की ऊर्जा कितनी तेजी से पदार्थ में समा जाती है।

इनसे यह अनुमान लगाया गया कि ग्लेशियर में बर्फ बनाम चट्टानों का अनुपात कितना है। चूंकि इन ग्लेशियरों की सतह धूल से ढकी होती है, इसलिए केवल दृश्य निरीक्षण से यह जानकारी नहीं मिल सकती।

मार्स पर पांच स्थानों पर हुआ विश्लेषण:

इस शोध में SHARAD (SHAllow RADar) उपकरण का उपयोग किया गया जो Mars Reconnaissance Orbiter पर लगा है। इसकी मदद से पांच अलग-अलग स्थलों पर अध्ययन किया गया जो ग्रह के विभिन्न हिस्सों में फैले हुए थे।

शोधकर्ताओं को यह जानकर हैरानी हुई कि चाहे ये ग्लेशियर उत्तर या दक्षिण गोलार्द्ध में हों, इनकी संरचना लगभग समान है।

स्मिथ ने बताया, “इसका मतलब यह है कि इन ग्लेशियरों का निर्माण और संरक्षण का तरीका पूरे ग्रह पर एक जैसा रहा है।” इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि या तो मंगल पर कभी व्यापक हिमयुग आया था, या कई बार ऐसे हिमयुग हुए जिनकी विशेषताएँ समान थीं।

इस अध्ययन ने पहली बार इन पांच स्थानों और विश्लेषण तकनीकों को जोड़कर ग्लेशियरों को लेकर एक समन्वित दृष्टिकोण प्रदान किया।

भविष्य की योजनाएं:

अब टीम का अगला लक्ष्य है कि मंगल ग्रह पर और अधिक ग्लेशियरों की पहचान की जाए और उनका विश्लेषण कर इस ज्ञान को और मजबूत किया जाए। साथ ही, यह जानकारी भविष्य में मंगल पर मानव मिशनों की योजना बनाते समय उपयोगी सिद्ध हो सकती है क्योंकि वहां की बर्फ को पीने योग्य पानी या ईंधन निर्माण के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।